हे वत्स !उठ........... ऊपर उठ।प्रगति के सोपान एक के बाद एक तय करता जा।दृढ़ निश्चय कर कि'अब अपना जीवनदिव्यता की तरफ लाऊँगा।
भगवान में इतना राग करो, उस शाश्वत चैतन्य में इतना राग करो कि नश्वर का राग स्मरण में भी न आये। शाश्वत के रस में इतना सराबोर हो जाओ, राम के रस में इतना तन्मय हो जाओ कि कामनाओं का दहकता हुआ, चिंगारियाँ फेंकता हुआ काम का दुःखद बड़वानल हमारे चित्त को न तपा सके, न सता सके।
badhiyaa prayaas hai.....
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