Wednesday, May 19, 2010

Jaise samudr me apane aap paani jaataa, aisaa gyaanwaan ke paas saare aanand, saare sukh apane aap chalaa jaataa.. gyaani jahaa jaataa wahaa se to aanand aur sukh ubharataa hai.. chandramaa me, sury me jo prakaash hai vo is aatm sattaa kaa hi hai..!
अतीत का शोक और भविष्य की चिंता क्यों करते हो?हे प्रिय !वर्तमान में साक्षी, तटस्थ और प्रसन्नात्मा होकर जीयो....

Monday, May 17, 2010

वह संगति जल जाय जिसमें कथा नहीं राम की।बिन खेती के बाढ़ किस काम की।।
Jaise samudr me apane aap paani jaataa, aisaa gyaanwaan ke paas saare aanand, saare sukh apane aap chalaa jaataa.. gyaani jahaa jaataa wahaa se to aanand aur sukh ubharataa hai.. chandramaa me, sury me jo prakaash hai vo is aatm sattaa kaa hi hai..!
meri haisiyat hi kya thi, jo tum na sath hote, meri haisiyat hi kya thi, jo tum na sath hote, samta ke path tumne, adbhut diye sikhaye, tumne hi daya karke, bigde kaaj bahnaye

ગુરુ બાવની .....

ગુરુજી મારા દિન દયાળ, લેજો પ્રભુ સૌની સંભાળ ,
ભક્ત જનોના કરવા ઉદ્ધાર, ધર્યો મનુષ્ય દેહ અવતાર,
ગુરુજી તમારો મહિમા અપાર, ગુણ ગાતા નહિ આવે પાર,
વિનવું તમને વારંવાર, વંદુ તમને જુગડાધાર,
લીલા તમારી અપરંપાર,પલમાં કિધા કહીને નિહાલ,
પવિત્ર ભૂમિ સુંદર ધામ, ત્યાં કીધો ગુરુજી એ મુકામ,
ભક્ત હ્રિદય માં તમારું નામ, તમ ચારનો માં અડસઠ ધામ,
સમરું તમને સ્વાસેસ્વાસ, આવી હ્રીદયે કરજો વાસ,
ભક્ત જનોના કરવા કાજ, પ્રમે પધારો ગુરુજી આજ,
ભક્તિ ની એ બાંધી પાજ, ભક્તિ કરતાન જાયે લાજ,
દિવ્ય ચક્ષુ દિવ્ય જ્ઞાન, દેજો અમને ભક્તિ જ્ઞાન,
ખાધી ઠોકર જગની માંય, ત્યારે આવીયો ચારનો માંય,
મમ અવગુણ નો પાર નહિ, ભક્તિ ભાવ નું નામ નહિ,
પણ છો ગુરુજી આપ દયાળ, સરણે રાખો જણી બાળ,
દિવ્ય અનુપમ તેજ અપાર, ક્યાં પામું પ્રભુ તમારો પાળ,
સ્થાપો મુજને હ્રીદયા માંય, રાખો મુજને ચારનો માંય,
ધ્યાન ધારે કોઈ ભક્ત સુજાન, જ્ઞાન ભાનુ નો થશે ભાણ,
ભક્ત કહે છે રાખી આશ, ગુરુજી પૂરશે સૌની આશ,
દેહ દેવળ ના આતમ રામ, ભક્તો કરે છે પ્રમે પ્રણામ...
ભક્તો કરે છે પ્રમે પ્રણામ..., ભક્તો કરે છે પ્રમે પ્રણામ......

Friday, May 14, 2010

वह संगति जल जाय जिसमें कथा नहीं राम की।बिन खेती के बाढ़ किस काम की।।
संत श्री की आँखों में ऐसा दिव्य तेज जगमगाया करता है कि उनके अन्दर की गहरी अतल दिव्यता में डूब जाने की कामना करने वाला क्षणभर में ही उसमें डूब जाता है। मानो, उन आँखों में प्रेम और प्रकाश का असीम सागर हिलौरें ले रहा है।

Friday, May 7, 2010

दु:ख और चिन्ता, हताशा और परेशानी, असफलता और दरिद्रता भीतर की चीजें होती हैं, बाहर की नहीं । जब भीतर तुम अपने को असफल मानते हो तब बाहर तुम्हें असफलता दिखती है । भीतर से तुम दीन हीन मत होना । घबराहट पैदा करनेवाली परिस्थितियों के आगे भीतर से झुकना मत । ॐकार का सहारा लेना ।
ईश्वर के लिए जगत को छोड़ना पड़े तो छोड़ देना लेकिन जगत के लिए ईश्वर को कभी मत छोड़ना। ॐ......ॐ........ॐ.......ईश्वर के लिए प्रतिष्ठा छोड़ना पड़े तो छोड़ देना लेकिन प्रतिष्ठा के लिए ईश्वर को मत छोड़ना।
मुझे वेद पुरान कुरान से क्या।मुझे प्रभु का पाठ पढ़ा दे कोई।।मुझे मंदिर मस्जिद जाना नहीं।मुझे प्रभु के गीत सुना दे कोई।।
रागरहित हुए तो एक परमात्मा का साक्षात्कार हो गया, वे निश्चिन्त हो गये। फिर उनकी मृत्यु उनकी मृत्यु नहीं है, उनका जीना उनका जीना नहीं है। उनका हँसना उनका हँसना नहीं है। उनका रोना उनका रोना नहीं है। वे तो रोने से, हँसने से, जीने से, मरने से बहुत परे बैठे हैं।
जैसे समुद्र में अपने आप पानी जाता, ऐसा ज्ञानवान के पास सारे आनंद, सारे सुख अपने आप चला जाता.. ज्ञानी जहा जाता वहा से तो आनंद और सुख उभरता है.. चन्द्रमा में, सूर्य में जो प्रकाश है वो इस आत्म सत्ता का ही है..!

Sunday, May 2, 2010

'हमारी बात तो हमारे मित्र भी नहीं मानते तो शत्रु हमारी बात माने यह आग्रह क्यों ? सुख हमारी बात नहीं मानता, सदा नहीं टिकता तो दुःख हमारी बात बात कैसे मानेगा ? लेकिन सुख और दुःख जिसकी सत्ता से आ आकर चले जाते हैं वह प्रियतम तो सतत हमारी बात मानने को तत्पर है। अपनी बात मनवा-मनवाकर हम उलझ रहे हैं, अब तेरी बात... पूरी हो... उसी में हम राजी हो जाएँ ऐसी तू कृपा कर, हे प्रभु !See More
तुम कब तक बाहर के सहारे लेते रहोगे ? एक ही समर्थ का सहारा ले लो। वह परम समर्थ परमात्मा है। उससे प्रीति करने लग जाओ। उस पर तुम अपने जीवन की बागडोर छोड़ दो। तुम निश्चिन्त हो जाओगे तो तुम्हारे द्वारा अदभुत काम होने लगेंगे परन्तु राग तुम्हें निश्चिन्त नहीं होने देगा। जब राग तुम्हें निश्चिन्त नहीं होने दे तब सोचोः
:जैसे किसी सेठ याबड़े साहब से मिलने जाने परअच्छे कपड़े पहनकरजाना पड़ता है,वैसे ही बड़े-में-बड़ा जोपरमात्मा है, उससे मिलने केलिए अंतःकरण इच्छा, वासना सेरहित, निर्मल होना चाहिए।
सब घट मेरा साँईया खाली घट न कोय।बलिहारी वा घट की जा घट परगट होय।।कबीरा कुँआ एक है पनिहारी अनेक।न्यारे न्यारे बर्तनों में पानी एक का एक।।कबीरा यह जग निर्धना धनवंता नहीं कोई।धनवंता तेहू जानिये जा को रामनाम धन होई।।