Monday, August 27, 2012
वास्तु शुद्धिके सरल उपाय :
१. घरमें तुलसीके पौधे लगायें |
२. घर एवं आसपासके परिसरको स्वच्छ रखें |
३. घरमें नियमित गौ मूत्रका छिड़काव करें |
४. घरके अंदर सप्ताहमें दो दिन कच्चे नीम पत्तीकी धूनी जलाएं |
५. घरमें कंडेको प्रज्ज्वलित कर धुना एवं लोबानसे धूप दिखाएँ |
६. घरके चारों दीवारपर वास्तु शुद्धिकी सात्त्विक नामजपकी पट्टियाँ लगाएँ |
७. संतोंके भजन, स्त्रोत्र पठन या सात्त्विक नामजपकी ध्वनि चक्रिका (C.D) चलायें |
८. घरमें मृत पितरके चित्र अपनी दृष्टिके सामने न रखें |
९. घरमें कलह-क्लेश टालें, वास्तु देवता “तथास्तु” कहते रहते हैं अतः क्लेशसे कष्ट और बढ़ता है एवं धनका नाश होता है |
१० घरमें सत्संग प्रवचनका आयोजन करें | अतिरिक्त स्थान घरमें हो, तो
धर्म-कार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु, उस स्थानको किसी संत या गुरुके
कार्य हेतु अर्पण करें |
११. संतोंके चरण घरमें पड़नेसे, घरकी वास्तु १०% तक शुद्ध हो जाती है अतः संतोके आगमन हेतु अपनी अपनी भक्ति बढ़ाएं |
१२. प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें, घरके सदस्योंके मात्र प्रसन्नचित्त रहनेसे घरकी ३०% तक वास्तुकी शुद्धि हो जाती है |
१३॰ घरमें अधिकसे अधिक समय, सभी कार्य करते हुए नामजप करें |
१४. सुबह और संध्या समय घरके सभी सदस्य मिलकर पूजा स्थलपर आरती करें |
१५. घर के पर्दे, दीवार, चादर इत्यादिके रंग काले, बैंगनी या गहरे रंगके न हों यह ध्यान रखें |
५. घरमें कंडेको प्रज्ज्वलित कर धुना एवं लोबानसे धूप दिखाएँ |
६. घरके चारों दीवारपर वास्तु शुद्धिकी सात्त्विक नामजपकी पट्टियाँ लगाएँ |
७. संतोंके भजन, स्त्रोत्र पठन या सात्त्विक नामजपकी ध्वनि चक्रिका (C.D) चलायें |
८. घरमें मृत पितरके चित्र अपनी दृष्टिके सामने न रखें |
९. घरमें कलह-क्लेश टालें, वास्तु देवता “तथास्तु” कहते रहते हैं अतः क्लेशसे कष्ट और बढ़ता है एवं धनका नाश होता है |
१० घरमें सत्संग प्रवचनका आयोजन करें | अतिरिक्त स्थान घरमें हो, तो धर्म-कार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु, उस स्थानको किसी संत या गुरुके कार्य हेतु अर्पण करें |
११. संतोंके चरण घरमें पड़नेसे, घरकी वास्तु १०% तक शुद्ध हो जाती है अतः संतोके आगमन हेतु अपनी अपनी भक्ति बढ़ाएं |
१२. प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें, घरके सदस्योंके मात्र प्रसन्नचित्त रहनेसे घरकी ३०% तक वास्तुकी शुद्धि हो जाती है |
१३॰ घरमें अधिकसे अधिक समय, सभी कार्य करते हुए नामजप करें |
१४. सुबह और संध्या समय घरके सभी सदस्य मिलकर पूजा स्थलपर आरती करें |
१५. घर के पर्दे, दीवार, चादर इत्यादिके रंग काले, बैंगनी या गहरे रंगके न हों यह ध्यान रखें |
जब
हम संतों की वाणी को श्रद्धापूर्वक पढ़ते हैं उससे हमारी कारण देह (बुद्धि )
की शुद्धि होती है और वह सात्त्विक बनती है और जब हम संतों के चित्र देखते
हैं तो उससे हमारी वासना देह ( वासनाओं ) इस शुद्धि होती है | अपने मन एवं
इंद्रियों को जीत चुके आत्मज्ञानी संतों में इतनी शक्ति होती है
When we read the writings of saints with bhav (spiritual emotion , it
cleanses our karan deh (intellect) and makes it sattvik and when we look
at the the photo of a saint it cleanses the vasana deh (the the desire
body ) Such is the power of a self realised saints who have control over
his five senses and mind !
प्रश्न – ईश्वर को कैसे पाया जाय ?
उत्तर – हरेक साधक की अपनी अपनी क्षमता होती है सबकी अपनी-अपनी योग्यता
होती है| उसके कुल का सम्प्रदाय का जो भी मंत्र इत्यादि हो उसका जप-तप करता
रहे ठीक है | साथ ही साथ किसी ज्ञानवान महापुरुष का सत्संग सुनता रहे |
बुद्ध पुरुष के सत्संग के द्वारा साधक का अधिकार बढ़ता जाएगा | साधक की
योग्यता देखकर यदि ज्ञानवान मार्ग बताएं तो उस मार्ग परा चलने से साधक
जल्दी अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है |
प्रथम भक्ति संतन कर संगा |
दूसर रती मम कथा प्रसंगा ||
श्री योगवाशिष्ठ' के उपशम प्रकरण के 72 वें सर्ग में वशिष्ठजी महाराज ने कहा हैः "ज्ञानवान अभिमान से रहित चेष्टा करता है। वह देखता, हँसता, लेता, देता है परंतु हृदय से सदा शीतल बुद्धि रहता है। सब कामों में वह अकर्ता है, संसार की ओर से सो रहा है और आत्मा की ओर जागृत है। उसने हृदय से सबका त्याग किया है, बाहर सब कार्यों को करता है और हृदय में किसी पदार्थ की इच्छा नहीं करता। बाहर जैसा प्रकृत आचार प्राप्त होता है उसे अभिमान से रहित होकर करता है, द्वेष किसी में नहीं करता और सुख-दुःख में पवन की नाई होता है।
श्री योगवाशिष्ठ' के उपशम प्रकरण के 72 वें सर्ग में वशिष्ठजी महाराज ने कहा हैः "ज्ञानवान अभिमान से रहित चेष्टा करता है। वह देखता, हँसता, लेता, देता है परंतु हृदय से सदा शीतल बुद्धि रहता है। सब कामों में वह अकर्ता है, संसार की ओर से सो रहा है और आत्मा की ओर जागृत है। उसने हृदय से सबका त्याग किया है, बाहर सब कार्यों को करता है और हृदय में किसी पदार्थ की इच्छा नहीं करता। बाहर जैसा प्रकृत आचार प्राप्त होता है उसे अभिमान से रहित होकर करता है, द्वेष किसी में नहीं करता और सुख-दुःख में पवन की नाई होता है।
संसार
में कोई भी किसी का वैरी नहीं है। मन ही मनुष्य का वैरी और मित्र है। मन
को जीतोगे तो वह तुम्हारा मित्र बनेगा। मन वश में हुआ तो इन्द्रियाँ भी वश
में होंगी।
श्रीगौड़पादाचार्यजी ने कहा हैः 'समस्त योगी पुरूषों के
भवबंधन का नाश, मन की वासनाओं का नाश करने से ही होता है। इस प्रकार दुःख
की निवृत्ति तथा ज्ञान और अक्षय शांति की प्राप्ति भी मन को वश करने में ही
है।'
मन को वश करने के कई उपाय हैं। जैसे, भगवन्नाम का जप, सत्पुरूषों का सत्संग, प्राणायाम आदि।
मन
के समक्ष बार-बार उपर्युक्त विचार रखने चाहिए। शरीर को असत्, मल-मूत्र का
भण्डार तथा दुःखरूप जानकर देहाभिमान का त्याग करके सदैव आत्मनिश्चय करना
चाहिए। यह शरीर एक मकान से सदृश है, जो कुछ समय के लिए मिला है। जिसमें
ममता रखकर आप उसे अपना मकान समझ बैठे हैं, वह आपका नहीं है। शरीर तो
पंचतत्वों का बना हुआ है। आप तो स्वयं को शरीर मान बैठे हो, परंतु जब सत्य
का पता लगेगा तब कहोगे कि 'हाय ! मैं कितनी बड़ी भूल कर बैठा था कि शरीर को
'मैं' मानने लगा था।' जब आप ज्ञान में जागोगे तब समझ में आयेगा कि मैं
पंचतत्वों का बना यह घर नही हूँ, मैं तो इससे भिन्न सत्-चित्-आनन्दस्वरूप
हूँ। यह ज्ञान ही जिज्ञासु के लिए उत्तम खुराक है।
काहे एक बिना चित्त लाइये ?
ऊठत बैठत सोवत जागत, सदा सदा हरि ध्याइये।
हे भाई ! एक परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी से क्यों चित्त लगाता है ? उठते-बैठते, सोते-जागते तुझे सदैव उसी का ध्यान करना चाहिए।
यह शरीर सुन्दर नहीं है। यदि ऐसा होता तो प्राण निकल जाने के बाद भी यह
सुन्दर लगता। हाड़-मांस, मल-मूत्र से भरे इस शरीर को अंत में वहाँ छोड़कर
आयेंगे जहाँ कौए बीट छोड़ते हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)