Monday, August 27, 2012

संत और गुरु में क्या अंतर होता है ?

संतों में भी स्तर होते हैं , गुरुपद के संत (७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर) से शक्ति के स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं, सद्गुरु पद के संत (80% आध्यात्मिक स्तर) उसके अगले स्तर के होते हैं और उनसे आनंद के स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं और वह वह शक्ति के स्पंदन से अधिक सूक्ष्म होते हैं और सबसे ऊपर परात्पर पद के संत (९० % आध्यात्मिक स्तर) के होते हैं उनसे शांति के स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं |

सभी गुरु संत होते हैं, परन्तु सभी संत गुरु नहीं होते | गुरु पद एक कठिन पद होता है और कई बार संत इस पद को स्वीकार करने को इच्छुक नहीं होते और वे आत्मानंद में रत रहना पसंद करते हैं | ऐसे संतो के मात्र अस्तित्व से ब्रह्माण्ड की सात्त्विकता बनी रहती है | कुछ संत भक्तों के अध्यात्मिक कष्ट दूर तो करते हैं, पर किसी को शिष्य स्वीकार कर उसे मोक्ष तक ले जाने को इच्छुक नहीं होते क्योंकि संतों को पता होता है मात्र शिष्य बनाने से काम समाप्त नहीं होता, शिष्य जब तक मोक्ष को प्राप्त नहीं होता, तब तक वह उत्तरदायित्व गुरु का होता है; अतः कई गुरु शिष्य बनाते समय बहुत सतर्क रहते हैं और योग्य पात्र को ही शिष्य स्वीकार करते हैं | मात्र गुरु पद स्वीकार करने के पश्चात् संतो की प्रगति मोक्ष की द्रुत गति से होती है | ईश्वर प्रत्येक संत को गुरुके लिए नहीं चुनते, जिनमे दूसरों को सिखाने की विशेष क्षमता हो, मां समान मातृत्व, क्षमाशीलता और प्रेम हो, उसे ही सद्गुरु पद पर आसीन करते हैं |........

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