Monday, August 27, 2012

माया रची तू आप ही है, आप ही तू फँस गया।
कैसा महा आश्चर्य है ? तू भूल अपने को गया॥
संसार-सागर डूब कर, गोते पड़ा है खा रहा।
अज्ञान से भव सिन्धु में, बहता चला है जा रहा ॥७॥

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