skip to main
|
skip to sidebar
Asaram Bapu
Monday, August 27, 2012
माया रची तू आप ही है, आप ही तू फँस गया।
कैसा महा आश्चर्य है ? तू भूल अपने को गया॥
संसार-सागर डूब कर, गोते पड़ा है खा रहा।
अज्ञान से भव सिन्धु में, बहता चला है जा रहा ॥७॥
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Pages
Home
True Love
Followers
Blog Archive
▼
2012
(46)
▼
August
(13)
संत और गुरु में क्या अंतर होता है ? संतों मे...
वास्तु शुद्धिके सरल उपाय : १. घरमें तुलसीके पौध...
जब हम संतों की वाणी को श्रद्धापूर्वक पढ़ते हैं उ...
प्रश्न – ईश्वर को कैसे पाया जाय ? उत्तर – हरे...
श्री योगवाशिष्ठ' के उपशम प्रकरण के 72 वें सर्ग ...
श्री योगवाशिष्ठ' के उपशम प्रकरण के 72 वें सर्ग ...
संसार में कोई भी किसी का वैरी नहीं है। मन ही मन...
माया रची तू आप ही है, आप ही तू फँस गया। कैसा महा...
जैसी प्रीति संसार के पदार्थों में है, वैसी अग...
अपनी शक्ल को देखने के लिए तीन वस्तुओं की आवश्...
ये मोहब्बत की बाते है औधव बंदगी अपने बस ...
मन के समक्ष बार-बार उपर्युक्त विचार रखने चाहि...
काहे एक बिना चित्त लाइये ? ऊठत बैठत सोवत जागत, स...
►
April
(13)
►
March
(20)
►
2011
(11)
►
February
(11)
►
2010
(186)
►
September
(2)
►
June
(22)
►
May
(17)
►
April
(63)
►
March
(82)
About Me
Dayena Patel
View my complete profile
No comments:
Post a Comment