Wednesday, March 21, 2012

हम दुःख का कारण बाह्य परस्थिति को मानते हैं, किसी वस्तु या व्यक्ति को मानते हैं, वास्तव में दुःख का कारण हमारी खुद की नासमझी है । व्यक्ति, वस्तु और परस्थिति को ठीक करने से दुःख नहीं मिटता, दुःख मिटता है खुद की नासमझी मिटाने से और सच्ची समझ आती है सत्संग से, भगवन्नाम जप से । वास्तव में जीवमात्र का स्वभाव आनंदस्वभाव ही है । गुरुमंत्र की दीक्षा, सत्संग के आश्रय और भगवन्नाम के सुमिरन से अपने आनंद को जगायें ।

भगवान ने आपको संसार में दुःखी होने के लिए नहीं भेजा है, चिंता और तनाव में रहने के लिए नहीं भेजा है । चिंता की जगह भगवान के नाम का चिंतन करें, भगवान के नाम का आश्रय लें, भगवान का ध्यान करें, गुरु-ज्ञान की कुंजियाँ लेकर सुख-दुःख के सिर पर पैर रखकर अपने आनंदस्वभाव में स्थित हो जायें । वर्तमान में प्रसन्न रहें, अपने मन को कभी मलिन न होने दें । मंत्रों में सुषुप्त शक्तियों को जागृत करने की विलक्षण क्षमता होती है । यंत्र से भी मंत्र अधिक प्रभावशाली होता है ।
सच्चे साधक :-

पुराने जमाने की बात है। किसी गांव में एक गाड़ीवान रहता था। वह लोगों को गांव से शहर और एक गांव से दूसरे गांव छोड़ने का काम करता था। लेकिन वह अपने काम से संतुष्ट नहीं था। हर समय वह परेशान रहता था। तभी उसने लोगों से एक संत की चर्चा सुनी। वह उनके पास पहुंच गया। उसने संत को प्रणाम कर कहा - महाराज , मैं एक गांव से दूसरे गांव गाड़ी ले जाता हूं। यह काम मुझे पसंद नहीं क्योंकि गाड़ी हांकने के कारण मैं भगवान की प्रार्थना करने से वंचित रहता हूं। मुझे ईश्वरोपासना का समय ही नहीं मिलता। मैं इस धंधे से छुटकारा चाहता हूं। संत ने पूछा - क्या गाड़ी चलाते समय तुम्हें रास्ते में गरीब अपंग और वृद्ध आदि मिलते हैं ? गाड़ीवान ने कहा - हां ऐसे लोग समय - समय पर मिलते रहते हैं।

संत ने पूछा - क्या तुम उनसे पैसे लेते हो या उन्हें मुफ्त में यात्रा कराते हो ? इस पर गाड़ीवान बोला - मैं गरीब , दीन - दुखियों , बूढ़े अपाहिज आदि से कुछ भी नहीं लेता। इस पर संत ने कहा - तब तो तुम इस पेशे को बिल्कुल मत छोड़ना। तुम गरीब और असहाय व्यक्तियों को एक जगह से दूसरी जगह छोड़कर जो पुण्य कमा रहे हो वह तुम्हें प्रार्थना से कभी नहीं मिलेगा। क्योंकि दीन - दुखियों की सेवा ही सच्ची प्रार्थना है। तुमने उनकी मदद कर उनसे कहीं बड़ा काम किया है जो दिन - रात भगवान का नाम जपते रहते हैं या तीर्थयात्रा या व्रत - उपवास करते हैं। तुम सच्चे साधक हो। इसलिए जाओ , जो कर रहे हो उसे ही मन लगाकर करते रहो। गाड़ीवान संतुष्ट होकर चला गया।
जब सबमे परमात्मबुद्धि की जाती है
तब सब कुछ परमात्मा ही है
ऐसा दिखने लगता है | फिर इस
परमात्मदृष्टिसे भी उपराम होने से
संपूर्ण संशय स्वतः
निवृत्त हो जाते है |

- पूज्य गुरुदेव
तूफान और आँधी हमको न रोक पाये।
वे और थे मुसाफिर जो पथ से लौट आये।।
मरने के सब इरादे जीने के काम आये।
हम भी तो हैं तुम्हारे कहने लगे पराये।।

ऐसा कौन है जो तुम्हें दुःखी कर सके? तुम यदि न चाहो तो दुःखों की क्या मजाल है जो तुम्हारा स्पर्श भी कर सके? अनन्त-अनन्त ब्रह्माण्ड को जो चला रहा है वह चेतन तुम्हीं हो।
हम दुःख का कारण बाह्य परस्थिति को मानते हैं, किसी वस्तु या व्यक्ति को मानते हैं, वास्तव में दुःख का कारण हमारी खुद की नासमझी है । व्यक्ति, वस्तु और परस्थिति को ठीक करने से दुःख नहीं मिटता, दुःख मिटता है खुद की नासमझी मिटाने से और सच्ची समझ आती है सत्संग से, भगवन्नाम जप से । वास्तव में जीवमात्र का स्वभाव आनंदस्वभाव ही है । गुरुमंत्र की दीक्षा, सत्संग के आश्रय और भगवन्नाम के सुमिरन से अपने आनंद को जगायें ।

हमारी बुद्धि का दुर्भाग्य तो यह है कि जो सदा साथ में है उसी साथी से मिलने के लिए तत्परता नहीं आती। जो हाजरा-हजूर है उससे मिलने की तत्परता नहीं आती। वह सदा हमारे साथ होने पर भी हम अपने को अकेला मानते हैं कि दुनियाँ में हमारा कोई नहीं। हम कितना अनादर करते हैं अपने ईश्वर का !

'हे धन ! तू मेरी रक्षा कर। हे मेरे पति ! तू मेरी रक्षा कर। पत्नी ! तू मेरी रक्षा कर। हे मेरे बेटे ! बुढ़ापे में तू मेरी रक्षा कर।' हम ईश्वरीय विधान का कितना अनादर कर रहे हैं !!

बेटा रक्षा करेगा ? पति रक्षा करेगा ? पत्नी रक्षा करेगी ? धन रक्षा करेगा ? लाखों-लाखों पति होते हुए भी पत्नियाँ मर गईं। लाखों-लाखों बेटे होते हुए भी बाप परेशान रहे। लाखों-लाखों बाप होते हुए भी बेटे परेशान रहे क्योंकि बापों में बाप, बेटों में बेटा, पतियों में पति, पत्नियों में पत्नी बन कर जो बैठा है उस प्यारे के तरफ हमारी निगाह नहीं जाती।

भूल्या जभी रबनू तभी व्यापा रोग।

जब उस सत्य को भूले हैं, ईश्वरीय विधान को भूले हैं तभी जन्म-मरण के रोग, भय, शोक, दुःख चिन्ता आदि सब घेरे रहते हैं। अतः बार-बार मन को इन विचारों से भरकर, अन्तर्यामी को साक्षी समझकर प्रार्थना करते जाएँ, प्रेरणा लेते जाएँ और जीवन की शाम होने से पहले तदाकार हो जाएँ।

ॐ शांति...... ॐ आनन्द...... ॐ....ॐ.....ॐ....।

शांति.... शांति.....। वाह प्रभु ! तेरी जय हो ! ईश्वरीय विधान। तुझे नमस्कार ! हे ईश्वर ! तू ही अपनी भक्ति दे और अपनी ओर शींच ले।

नारायण..... नारायण..... नारायण.....

विधान का स्मरण करके साधना करेंगे तो आपकी सहज साधना हो जायगी। गिरि गुफा में तप करने, समाधि लगाने नहीं जाना पड़ेगा। सतत सावधान रहें तो सहज साधना हो जाएगी। ईश्वरीय विधान को समझकर जीवन जिएं, उसके साथ जुड़े रहें तो सहज साधना हो जाएगी |

- पूज्य गुरुदेव