Sunday, April 15, 2012

जीव मात्र का हित केवल इसी बात में है कि वह किसी और का सहारा न लेकर केवल भगवान की ही शरण ले ले। भगवान के शरण होने के सिवाय जीव का कहीं भी, किंचित मात्र भी नहीं है।

कारण यह है कि जीव साक्षात् परमात्मा का अंश है। इससे वह परमात्मा को छोड़कर और किसी का सहारा लेगा तो वह सहारा टिकेगा नहीं।

जब संसार की कोई भी वस्तु, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति, अवस्था आदि स्थिर नहीं है तो फिर इनका सहारा कैसे स्थिर रह सकता है ? इनका सहारा तो रहेगा नहीं, केवल चिन्ता, शोक, दुःख आदि रह जायेंगे।............. पूज्यपाद श्रीबापूजी

Thursday, April 5, 2012

वाणी के मौन से शक्ति का संचार होता है..

मन के मौन से शांति की अभिवृध्दी होती है….

बुध्दी के मौन से परमात्म प्रागट्य होता है…शिवोहम शिवोहम ..चिदानंद रूपम..



अहिंसक मनोवृत्ति, इंद्रिय संयम वाली नज़रिया, जीव पर दया, क्षमा का सदगुण , मन का संयम, ज्ञान और ध्यान में रूचि सत्य में प्रीति करने में सक्षम है…
जो कुछ तू देखता है वह सब तू ही है। कोई शक्ति इसमें बाधा नहीं डाल सकती। राजा, देव, दानव, कोई भी तुम्हारे विरुद्ध खड़े नहीं हो सकते।

तुम्हारी शंकाएँ और भय ही तुम्हारे जीवन को नष्ट करते हैं। जितना भय और शंका को हृदय में स्थान दोगे, उतने ही उन्नति से दूर पड़े रहोगे।

Tuesday, April 3, 2012

यदि तुमने शरीर के साथ अहंबुद्धि की तो तुममें भय व्याप्त हो ही जायेगा, क्योंकि शरीर की मृत्यु निश्चित है। उसका परिवर्तन अवश्यंभावी है। उसको तो स्वयं ब्रह्माजी भी नहीं रोक सकते। परन्तु यदि तुमने अपने आत्मस्वरूप को जान लिया, स्वरूप में तुम्हारी निष्ठा हो गयी तो तुम निर्भय हो गये, क्योंकि स्वरूप की मृत्यु कभी होती नहीं। मौत भी उससे डरती है।
परमात्मा का प्यारा

जिस मनुष्य को परमात्मा सदैव याद है और जिसका उस प्यारे से प्रेम है, वह कदापि उसके नियम को तोड़ नहीं सकता, अपितु उसके नियम अनुसार व्यव्हार करके शरीर, मन और आत्मा की उन्नति करता है|

वह सर्वदा सत्य पर स्थित रहता है| बुरे संग से दूर भागकर, श्रेष्ठ का संग करता है| ख़राब विचारों को अन्तःकरण से निकाल कर, सच्चाई धारण करता है| शरीर की उन्नति के लिए स्वास्थ्य के नियमों से परिचित होकर, उसके अनुसार चलता है|

*** धन का गर्व, कुटुंब का गर्व, इनका तुम जो गर्व कर रहे हो, वे तुम्हें तुम्हारे होते हुए छोड़ जाएँगे अथवा तुम उन्हें छोड़ जाओगे|
मुझ को जमीन आसमान मिल गई,
साईं क्या मिले सब कुछ मिल गए ।
मुझ को जमीन आसमान मिल गई,
साईं क्या मिले हर ख़ुशी मिल गई ॥

कैसा बेअरुखा था जीवन कैसी बेबसी,
रूठ गई थी मुझसे कब की हर ख़ुशी ।
मेहर हो गए मेहरबान मिल गए,
साईं क्या मिले सब कुछ मिल गए ॥

हर जनम में ध्यान अधुरा छोड़ आई है,
पन्ने जैसे जान के हम मोड़ आई हैं ।
साईं में ही गीता कुरान मिल गए,
साईं क्या मिले सब कुछ मिल गए ॥

Thursday, March 29, 2012

विकारों से बचने हेतु संकल्प-साधना

विषय विकार साँप के विष से भी अधिक भयानक हैं। इन्हें छोटा नहीं समझना चाहिए। सौ मन दूध में विष की एक बूँद डालोगे तो परिणाम क्या मिलेगा ? पूरा सौ मन व्यर्थ हो जाएगा।
साँप तो काटेगा, तभी विष चढ़ पायेगा किंतु विषय विकार का केवल चिंतन हो मन को भ्रष्ट कर देता है। अशुद्ध वचन सुनने से मन मलिन हो जाता है।
अतः किसी भी विकार को कम मत समझो। विकारों से सदैव सौ कौस दूर रहो। भ्रमर में कितनी शक्ति होती है कि वह लकड़ी को भी छेद देता है, परंतु बेचारा फूल की सुगंध पर मोहित होकर, पराधीन होकर अपने को नष्ट कर देता है। हाथी स्पर्श के वशीभूत होकर स्वयं को गड्ढे में डाल देता है। मछली स्वाद के कारण काँटे में फँस जाती है। पतंगा रूप के वशीभूत होकर अपने को दीये पर जला देता है। इन सबमें सिर्फ एक-एक विषय का आकर्षण होता है फिर भी ऐसी दुर्गति को प्राप्त होते हैं, जबकि मनुष्य के पास तो पाँच इन्द्रियों के दोष हैं। यदि वह सावधान नहीं रहेगा तो तुम अनुमान लगा सकते हो कि उसका क्या हाल होगा ?
अतः भैया मेरे ! सावधान रहें। जिस-जिस इन्द्रिय का आकर्षण है उस-उस आकर्षण से बचने का संकल्प करें। गहरा श्वास लें और प्रणव (ओंकार) का जप करें। मानसिक बल बढ़ाते जायें। जितनी बार हो सके, बलपूर्वक उच्चारण करें। फिर उतनी ही देर मौन रहकर जप करें। आज उस विकार में फिर से नहीं फँसूँगा या एक सप्ताह तक अथवा एक माह तक नहीं फँसूँगा... ऐसा संकल्प करें। फिर से गहरा श्वास लें। 'हरि ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ.... हरि ॐॐॐॐॐ.