Tuesday, February 1, 2011

देह है घड़ा। तुम हो आकाशस्वरूप। तुम हो सागर। देह है उसमें बुलबुला। तुम हो सोना। देह है आकृति। तुम हो मिट्टी तो देह है खिलौना। तुम हो धागा और देह है उसमें पिरोया हुआ मणि। इसीलिए गीता में कहा हैःसूत्रे मणिगणा इव।भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं जगत में व्याप्त हूँ। कैसे ? जैसे पिरोये हुए मणियों में धागा व्याप्त है ऐसे।

No comments:

Post a Comment