Thursday, April 22, 2010
Tuesday, April 20, 2010
यह जीव जब अपने शुद्ध, बुद्ध, चैतन्यस्वरूप को वरना चाहता है तो वह प्रेम में चड़ता हैजीव किसी हाड-मांस के पति या पतनी को वरकर विकारी सुख भोगना चाहता है तब प्रेम में पड़ता हैशरीर के द्वारा जब सुख लेने की लालच होती है तो प्रेम में पड़ता है और अंतर्मुख होकर जब परम सुख में गोता मारने की इच्छा होती है तब प्रेम में चड़ता है प्रेम किये बिना कोई रह नहीं सकताप्रेम में जो पड़े,वह संसार है..प्रेम में जो चड़े,वह साक्षात्कार है
कोई प्रेम में पड़ता है तो कोई प्रेम में चड़ता है प्रेम में पड़ना एक बात है लेकिन प्रेम में चड़ना तो कोई निराली ही बात है
वे सत्पुरूष क्यों हैं ? कुदरत जिसकी सत्ता से चलती है उस सत्य में वे टिके हैं इसलिए सत्पुरूष हैं। हम लोग साधारण क्यों हैं ? हम लोग परिवर्तनशील, नश्वर, साधारण चीजों में उलझे हुए हैं इसलिए साधारण हैं।
संतोंके दर्शन,स्पर्श,उपदेश-श्रवण और चरणधूलिके सिर चढ़ानेकी बात तो दूर रही,जो कभी अपने मनसे संतोंका चिन्तन भी कर लेता है,वही शुद्धान्त:करण होकर भगव्तप्राप्ति का अधिकारी बन जाता है।
तुम्हारी 'मैं....मैं...' जहाँ से स्फुरित होकर आ रही है उस उदगम स्थान को नहीं भी जानते हो फिर भी उसे धन्यवाद देते हुए स्नेह करो। ऐसा करने से तुम्हारी संवित् वहीं पहुँचेगी जहाँ योगियों की संवित् पहुँचती है, जहाँ भक्तों की भाव संवित विश्रान्ति पाती है, तपस्वियों का तप जहाँ फलता है, ध्यानियों का ध्यान जहाँ से सिद्ध होता है और कर्मयोगियों को कर्म करने की सत्ता जहाँ से मिलती है।
Monday, April 19, 2010
शरीर संसार के लिए है। एकान्त अपने लिए है और प्रेम भगवान के लिए है। यह बात अगर समझ में आ जाय तो प्रेम से दिव्यता पैदा होगी, एकान्त से सामर्थ्य आयेगा और निष्कामता से बाह्य सफलताएँ तुम्हारे चरणों में रहेंगी।
धन से बेवकूफी नहीं मिटती है, सत्ता से बेवकूफी नहीं मिटती है, तपस्या से बेवकूफी नहीं मिटती है, व्रत रखने से बेवकूफी नहीं मिटती है। बेवकूफी मिटती है ब्रह्मज्ञानी महापुरूषों के कृपा-प्रसाद से और सत्संग से, सत्शास्त्रों की रहमत से।
आनंद का ऐसा सागर मेरे पास था और मुझे पता न था अनंत प्रेम का दरिया मेरे भीतर लहरा रहा था और मैं भटक रहा था संसार के तुच्छ शुकों में! हे मेरे गुरुदेव! मुझे माफ़ कर देना
चन्द्रमा में अमृत बरसाने की सत्ता जहाँ से आती है वही चैतन्य तुम्हारे दिल को और तुम्हारी नस-नाड़ियों को, तुम्हारी आँखों को और मन-बुद्धि को स्फुरणा और शक्ति देता है। जो चैतन्य सत्ता सूर्य में प्रकाश और प्रभाव भरती है, चन्द्रमा में चाँदनी भरती है वही चैतन्य सत्ता तुम्हारे हाड़-मांस के शरीर में भी चेतना, प्रेम और आनन्द की धारा बहाती है।
Sunday, April 18, 2010
हे वत्स !उठ........... ऊपर उठ।प्रगति के सोपान एक के बाद एक तय करता जा।दृढ़ निश्चय कर कि'अब अपना जीवनदिव्यता की तरफ लाऊँगा।
भगवान में इतना राग करो, उस शाश्वत चैतन्य में इतना राग करो कि नश्वर का राग स्मरण में भी न आये। शाश्वत के रस में इतना सराबोर हो जाओ, राम के रस में इतना तन्मय हो जाओ कि कामनाओं का दहकता हुआ, चिंगारियाँ फेंकता हुआ काम का दुःखद बड़वानल हमारे चित्त को न तपा सके, न सता सके।
संगी साथी चल गए सारे, कोई ना दिज्यो साथ lकहे तुलसी साथ न छोडे तेरा एक रघुनाथ.. ll..संगी साथी सब छुट जाते , साथ नही आते…मरने के बाद भी साथ नही छोड़ते वो है आप के रघुनाथ …आप का आत्मा…
Saturday, April 17, 2010
Thursday, April 15, 2010
Wednesday, April 14, 2010
Tuesday, April 13, 2010
अपने अन्दर से कभी कम होने मत देना प्रेम के भाव भाव को,शांति के स्वभाव को,ईश के प्रभाव को,श्रद्धा के सद्भाव को! बहुत जरुरी है परिवार के लिए शांति , समाज के लिए क्रांति , जीवन के लिए उन्नति, सफलता के लिए सम्मति!
"भविष्य जानने की कोशिश मत करो। भविष्य परमात्मा के हाथ में है, वर्तमान आप के हाथ में है। भूतकाल बीत गया, उस की कोई कीमत नहीं । वर्तमान को अच्छा बना रहे है तो भविष्य की नींव डाल रहे हैं ।"
शान्ति के समान कोई तप नहीं हे !संतोष से बढ्कर कोई सुख नहीं हे !तृष्णा से बढकर कोई व्याधि नहीं हे ! दया के समान कोई धर्म नहीं हे !सत्य जीवन हे और असत्य मृत्यु हे !घृणा करनी हे तो अपने दोषों से करो !लोभ करना हे तो प्रभू के स्मरण का करो !बैर करना हे तो अपने दुराचारों से करो !दूर रहना हे तो बुरे संग से रहो ! मोह करना हो तो परमात्मा से करो !
Sunday, April 11, 2010
Wednesday, April 7, 2010
गुरू
गुरू की मूर्ति ध्यान का मूल है। गुरू के चरणकमल पूजा का मूल है। गुरू का वचन मोक्ष का मूल है।
गुरू तीर्थस्थान हैं। गुरू अग्नि हैं। गुरू सूर्य हैं। गुरू समस्त जगत हैं। समस्त विश्व के तीर्थधाम गुरू के चरणकमलों में बस रहे हैं। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, पार्वती, इन्द्र आदि सब देव और सब पवित्र नदियाँ शाश्वत काल से गुरू की देह में स्थित हैं। केवल शिव ही गुरू हैं
गुरू और इष्टदेव में कोई भेद नहीं है। जो साधना एवं योग के विभिन्न प्रकार सिखाते है वे शिक्षागुरू हैं। सबमें सर्वोच्च गुरू वे हैं जिनसे इष्टदेव का मंत्र श्रवण किया जाता है और सीखा जाता है। उनके द्वारा ही सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
अगर गुरू प्रसन्न हों तो भगवान प्रसन्न होते हैं। गुरू नाराज हों तो भगवान नाराज होते हैं। गुरू इष्टदेवता के पितामह हैं।
जो मन, वचन, कर्म से पवित्र हैं, इन्द्रियों पर जिनका संयम है, जिनको शास्त्रों का ज्ञान है, जो सत्यव्रती एवं प्रशांत हैं, जिनको ईश्वर-साक्षात्कार हुआ है वे गुरू हैं।
मेरे गुरूजी
लेकिन मुझे ऐसा क्यों लगता कि
तुम बिन मेरा जीवन अधूरा हैं
तुम्हारे अतिरिक्त नही कर पाता
मैं और कुछ भी चिंतन
यह स्मरण ही
अब मेरा जीवन हैं
परमात्मा
बल ही जीवन है, निर्बलता ही मौत है। शरीर का स्वास्थ्यबल यह है कि बीमारी जल्दी न लगे। मन का स्वास्थ्य बल यह है कि विकार हमें जल्दी न गिरायें। बुद्धि का स्वास्थ्य बल है कि इस जगत के माया जाल को, सपने को हम सच्चा मानकर आत्मा का अनादर न करें। 'आत्मा सच्चा है, 'मैं' जहाँ से स्फुरित होता है वह चैतन्य सत्य है। भय, चिंता, दुःख, शोक ये सब मिथ्या हैं, जाने वाले हैं लेकिन सत्-चित्-आनंदस्वरूप आत्मा 'मैं' सत्य हूँ सदा रहने वाला हूँ' – इस तरह अपने 'मैं' स्वभाव की उपासना करो। श्वासोच्छवास की गिनती करो और यह पक्का करो कि 'मैं चैतन्य आत्मा हूँ।' इससे आपका आत्मबल बढ़ेगा, एक एक करके सारी मुसीबतें दूर होती जायेंगी।
Thursday, April 1, 2010
dil ek mandir
Realisation of God
The man whispered,
"God, speak to me"
and a meadowlark sang.
But, the man did not hear.
So the man yelled,
"God, speak to me"
and the thunder rolled across the sky.
But, the man did not listen
The man looked around and said,
"God let me see you."
And a star shined brightly.
But the man did not see.
And, the man shouted,
"God show me a miracle."
And, a life was born. But,
the man did not notice
So, the man cried out in despair,
"Touch me God, and let me know you are here."
Whereupon, God reached down and touched the man.
But, the man brushed the butterfly away ...
and walked on.
I found this to be a great reminder that God is always around us in the little and simple things that we take for granted. Don't miss out on a blessing because it isn't packaged the way that you expect.