Tuesday, April 20, 2010

यह जीव जब अपने शुद्ध, बुद्ध, चैतन्यस्वरूप को वरना चाहता है तो वह प्रेम में चड़ता हैजीव किसी हाड-मांस के पति या पतनी को वरकर विकारी सुख भोगना चाहता है तब प्रेम में पड़ता हैशरीर के द्वारा जब सुख लेने की लालच होती है तो प्रेम में पड़ता है और अंतर्मुख होकर जब परम सुख में गोता मारने की इच्छा होती है तब प्रेम में चड़ता है प्रेम किये बिना कोई रह नहीं सकताप्रेम में जो पड़े,वह संसार है..प्रेम में जो चड़े,वह साक्षात्कार है

कोई प्रेम में पड़ता है तो कोई प्रेम में चड़ता है प्रेम में पड़ना एक बात है लेकिन प्रेम में चड़ना तो कोई निराली ही बात है

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