Sunday, April 11, 2010

हे नाथ! मानमें, बड़ाईमें, आदरमें, रुपयोंमें, भोगोंमें, संग्रहमें, सुखमें, आराममें हमारा मन स्वत: जाता है-तो यह तो है हमारी दशा! और इसपर भी जो सत्संग मिलता है,आपकी चर्चा मिलती है,आपकी कथा मिलती है तो यह आपकी ही कृपा है महाराज!

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