Saturday, April 17, 2010

ऐसे ही अपौरूषय तत्त्व में ठहरे हुए ब्रह्मवेत्ता जब शास्त्रों के वचन बोलते हैं तो उनकी अमृतवाणी हमारे जीवन में जीवन-शक्ति का विकास करके जीवनदाता के करीब ले जाती है। जीवनदाता से मुलाकात कराने की क्षमता दे देती है। इसीलिए कबीर जी ने कहाः सुख देवे दुःख को हरे करे पाप का अन्त ।कह कबीर वे कब मिलें परम स्नेही सन्त ।। :

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