Wednesday, April 7, 2010

मेरे गुरूजी

मेरे गुरूजी तुमसे आरम्भ होती मेरी सुबह
लेकिन मुझे ऐसा क्यों लगता कि
तुम बिन मेरा जीवन अधूरा हैं
तुम्हारे अतिरिक्त नही कर पाता
मैं और कुछ भी चिंतन
यह स्मरण ही
अब मेरा जीवन हैं

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