Sunday, April 11, 2010

भगवान् श्रीरामचन्द्रजी को दया का सागर कहें, तब भी उनकी अपरिमित दया का तिरस्कार ही होता है।जीवों पर उनकी जो दया है, वह कल्पनातीत है।

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