सरों की निंदा, बदनामी और चुगली न करे, औरों को नीचा न दिखाये। निंदा करना अधर्म बताया गया है, इसलिए दूसरों की और अपनी भी निंदा नहीं करना चाहिए। क्रूरताभारी बात न बोले। जिसके कहने से दूसरों को उद्वेग होता हो, वह रूखाई से भरी हुई बात नरक में ले जाने वाली होती है, उसे कभी मुँह से न निकले।
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