Saturday, April 17, 2010

जैसा रोग , वैसा ही निदान ; और वैसी ही औषधि या अनुमान जो सदगुरू भव रोग के निवारण के लिए अपने शिष्य को देते हैं .गुरु जो स्वयं करतें हैं, उसका अनुसरण मत करो, लेकिन जो आज्ञा गुरु- मुख से निकले, आदरपूर्वक उसे व्यव्हार में लाओ और उसके अनुसार आचरण करो.मन को केवल उन्ही शब्दों पर केन्द्रित करो और नित्य उन्हीं का चिंतन करो.क्योंकि केवल वे ही तुम्हारे कल्याण का कारण होंगे. निरंतर इसका स्मरण रखना............ ॐ साईं राम

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