Thursday, April 15, 2010

मानव तो आते भी रोता है और जाते वक़्त भी रोता है जब रोने का वक़्त नहीं होता तब भी रोता है एक सदगुरु में ही वह ताकत है, जो जन्म-मरन के मूल अज्ञान को काटकर मनुष्य को रोने से बचा सकते हैं "वे ही गुरु हैं जो आसूदा-ऐ-मंजिल कर दें वर्ना रास्ता तो हर शख्श बता देता है" ऊँगली पकड़कर, कदम-से-कदम मिलाकर, अंधकारमय गलिओं से बाहर निकालकर लक्ष्य तक पहुँचानेवाले सदगुरु ही होते हैं

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