Tuesday, June 15, 2010

यदि तू निज स्वरूप का प्रेमी बन जाये तो आजीविका की चिन्ता, रमणियों, श्रवण-मनन और शत्रुओं का दुखद स्मरण यह सब छूट जाये उदर-चिन्ता प्रिय चर्चा विरही को जैसे खले निज स्वरूप में निष्ठा हो तो ये सभी सहज टले

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