ये जितने बुरे क्षेम हैं वह अपनेमें तो आवेंगे नहीं और भगवान् की लीलामें दूसरे में आवे तो समझे अब भगवान् क्रोध के रुप में आये हैं।अब भगवान् इस रोग के रुपमें आये हैं।इस प्रकार इन सारे भावों में भी भगवान् का दर्शन करें।
हे नाथ ! हृदयमें आपकी लगन लग जाय। दिल में आप धँस जाओ। आपकी रुपमाधुरी आँखोंमें समा जाय, आपके लिये उत्कट अनुराग हो जाय। बस,बस इतना ही और कुछ नहीं चाहिये।
Monday, June 28, 2010
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