Wednesday, March 21, 2012

हमारी बुद्धि का दुर्भाग्य तो यह है कि जो सदा साथ में है उसी साथी से मिलने के लिए तत्परता नहीं आती। जो हाजरा-हजूर है उससे मिलने की तत्परता नहीं आती। वह सदा हमारे साथ होने पर भी हम अपने को अकेला मानते हैं कि दुनियाँ में हमारा कोई नहीं। हम कितना अनादर करते हैं अपने ईश्वर का !

'हे धन ! तू मेरी रक्षा कर। हे मेरे पति ! तू मेरी रक्षा कर। पत्नी ! तू मेरी रक्षा कर। हे मेरे बेटे ! बुढ़ापे में तू मेरी रक्षा कर।' हम ईश्वरीय विधान का कितना अनादर कर रहे हैं !!

बेटा रक्षा करेगा ? पति रक्षा करेगा ? पत्नी रक्षा करेगी ? धन रक्षा करेगा ? लाखों-लाखों पति होते हुए भी पत्नियाँ मर गईं। लाखों-लाखों बेटे होते हुए भी बाप परेशान रहे। लाखों-लाखों बाप होते हुए भी बेटे परेशान रहे क्योंकि बापों में बाप, बेटों में बेटा, पतियों में पति, पत्नियों में पत्नी बन कर जो बैठा है उस प्यारे के तरफ हमारी निगाह नहीं जाती।

भूल्या जभी रबनू तभी व्यापा रोग।

जब उस सत्य को भूले हैं, ईश्वरीय विधान को भूले हैं तभी जन्म-मरण के रोग, भय, शोक, दुःख चिन्ता आदि सब घेरे रहते हैं। अतः बार-बार मन को इन विचारों से भरकर, अन्तर्यामी को साक्षी समझकर प्रार्थना करते जाएँ, प्रेरणा लेते जाएँ और जीवन की शाम होने से पहले तदाकार हो जाएँ।

ॐ शांति...... ॐ आनन्द...... ॐ....ॐ.....ॐ....।

शांति.... शांति.....। वाह प्रभु ! तेरी जय हो ! ईश्वरीय विधान। तुझे नमस्कार ! हे ईश्वर ! तू ही अपनी भक्ति दे और अपनी ओर शींच ले।

नारायण..... नारायण..... नारायण.....

विधान का स्मरण करके साधना करेंगे तो आपकी सहज साधना हो जायगी। गिरि गुफा में तप करने, समाधि लगाने नहीं जाना पड़ेगा। सतत सावधान रहें तो सहज साधना हो जाएगी। ईश्वरीय विधान को समझकर जीवन जिएं, उसके साथ जुड़े रहें तो सहज साधना हो जाएगी |

- पूज्य गुरुदेव

No comments:

Post a Comment