Wednesday, March 21, 2012

सच्चे साधक :-

पुराने जमाने की बात है। किसी गांव में एक गाड़ीवान रहता था। वह लोगों को गांव से शहर और एक गांव से दूसरे गांव छोड़ने का काम करता था। लेकिन वह अपने काम से संतुष्ट नहीं था। हर समय वह परेशान रहता था। तभी उसने लोगों से एक संत की चर्चा सुनी। वह उनके पास पहुंच गया। उसने संत को प्रणाम कर कहा - महाराज , मैं एक गांव से दूसरे गांव गाड़ी ले जाता हूं। यह काम मुझे पसंद नहीं क्योंकि गाड़ी हांकने के कारण मैं भगवान की प्रार्थना करने से वंचित रहता हूं। मुझे ईश्वरोपासना का समय ही नहीं मिलता। मैं इस धंधे से छुटकारा चाहता हूं। संत ने पूछा - क्या गाड़ी चलाते समय तुम्हें रास्ते में गरीब अपंग और वृद्ध आदि मिलते हैं ? गाड़ीवान ने कहा - हां ऐसे लोग समय - समय पर मिलते रहते हैं।

संत ने पूछा - क्या तुम उनसे पैसे लेते हो या उन्हें मुफ्त में यात्रा कराते हो ? इस पर गाड़ीवान बोला - मैं गरीब , दीन - दुखियों , बूढ़े अपाहिज आदि से कुछ भी नहीं लेता। इस पर संत ने कहा - तब तो तुम इस पेशे को बिल्कुल मत छोड़ना। तुम गरीब और असहाय व्यक्तियों को एक जगह से दूसरी जगह छोड़कर जो पुण्य कमा रहे हो वह तुम्हें प्रार्थना से कभी नहीं मिलेगा। क्योंकि दीन - दुखियों की सेवा ही सच्ची प्रार्थना है। तुमने उनकी मदद कर उनसे कहीं बड़ा काम किया है जो दिन - रात भगवान का नाम जपते रहते हैं या तीर्थयात्रा या व्रत - उपवास करते हैं। तुम सच्चे साधक हो। इसलिए जाओ , जो कर रहे हो उसे ही मन लगाकर करते रहो। गाड़ीवान संतुष्ट होकर चला गया।

No comments:

Post a Comment