तूफान और आँधी हमको न रोक पाये।
वे और थे मुसाफिर जो पथ से लौट आये।।
मरने के सब इरादे जीने के काम आये।
हम भी तो हैं तुम्हारे कहने लगे पराये।।
ऐसा कौन है जो तुम्हें दुःखी कर सके? तुम यदि न चाहो तो दुःखों की क्या मजाल है जो तुम्हारा स्पर्श भी कर सके? अनन्त-अनन्त ब्रह्माण्ड को जो चला रहा है वह चेतन तुम्हीं हो।
Wednesday, March 21, 2012
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