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जीव मात्र का हित केवल इसी बात में है कि वह किसी और का सहारा न लेकर केवल भगवान की ही शरण ले ले। भगवान के शरण होने के सिवाय जीव का कहीं भी, किंचित मात्र भी नहीं है।
कारण यह है कि जीव साक्षात् परमात्मा का अंश है। इससे वह परमात्मा को छोड़कर और किसी का सहारा लेगा तो वह सहारा टिकेगा नहीं।
जब संसार की कोई भी वस्तु, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति, अवस्था आदि स्थिर नहीं है तो फिर इनका सहारा कैसे स्थिर रह सकता है ? इनका सहारा तो रहेगा नहीं, केवल चिन्ता, शोक, दुःख आदि रह जायेंगे।............. पूज्यपाद श्रीबापूजी
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