Sunday, April 15, 2012

श्री दादा गुरुवाणी - १५ अप्रैल २०१२

सत् वस्तु सब कुछ

संत महात्माओं की सच्चे मन से सेवा करना, अन्तःकरण में कोई स्वार्थ नहीं रखना और उनसे कुछ भी नहीं लेना चाहिए| यदि वह प्रसन्न होकर आप से कहें कि कुछ मांगो तो तुम मांगो कि मुझे सच्चा प्रेम अवं विश्वास दीजिये, जैसे न में आपको भुलाउं और ना आप मुझ भुलाएं, अपने साथ मिलाएं| किसी में स्वार्थ रखोगे तो दुःखी होगें, अत्यन्त दुःखी बनोगे| स्वार्थ एक अपने ज्योति स्वरुप से, आत्मा से रखो और उससे प्रेम से मिलकर एक हो जाओ|

*** पहली आत्म कृपा अर्थात् अपने आप पर कृपा करना| जहां दृढ़ संकल्प है, वहां अवश्य सफलता मिलती है|

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