skip to main |
skip to sidebar
अग्नि से अंगार दूर हो जाता है तो वह काला कोयला बन जाता है। पर वही कोयला जब पुनः अग्नि से मिल जाता है तो वह अग्निरूप बन जाता है और अंगार होकर चमक उठता है।
ऐसे ही यह जीव भगवान से विमुख हो जाता है तो वह बार-बार जन्मता-मरता और दुःख पाता रहता है। पर जब वह भगवान के सम्मुख हो जाता है, अनन्य भाव से भगवान की शरण में हो जाता है तो वह भगवत्स्वरूप बन जाता है और चमक उठता है।
इतना ही नहीं, विश्व का भी कल्याण ...करने वाला हो जाता है।
प्रेम-पतिया तब लिखूं जब पिया हो परदेश |
तन में, मन में, जन में, तो काहे सन्देश ||...... पूज्यपाद श्रीबापूजी
No comments:
Post a Comment