Sunday, April 15, 2012

दीक्षा तीन प्रकार की होती है। एक होती है मांत्रिक दीक्षा, दूसरी होती है शांभवी दीक्षा और तीसरी होती है स्पर्श दीक्षा। ब्रह्मवेत्ता गुरुदेव अपने परमात्म-भाव में बैठकर शिष्य को वैदिक मंत्र देते हैं। शिष्य जिसे केन्द्र में रहता है उस केन्द्र में जाने की कला जानने वाले गुरुदेव वहाँ बैठकर जब गुरुमंत्र देते हैं तो शिष्य के स्वभाव में रूपान्तर होता है। दीक्षा से शिष्य को कुछ न कुछ अनुभव हो जाना चाहिए। उसी समय नहीं तो दो चार दिन के बाद कुछ न कुछ तो होना ही चाहिए। पानी पिया तो प्यास बुझेगी ही, भोजन खाया जो भूख मिटेगी ही सूरज निकला तो अन्धकार मिटेगा ही। ऐसे ही मंत्र मिला तो पाप मिटने का अनुभव होगा। हृदय में रस का अनुभव होगा।

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