Tuesday, April 17, 2012

जगत से प्रीति हटाकर आत्मा में लगायें....


जैसी प्रीति संसार के पदार्थों में है, वैसी अगर आत्मज्ञान, आत्मध्यान, आत्मानंद में करें तो बेड़ा पार हो जाय। जगत के पदार्थों एवं वासना, काम, क्रोध आदि से प्रीति हटाकर आत्मा में लगायें तो तत्काल मोक्ष हो जाना आश्चर्य की बात नहीं है।
काहे एक बिना चित्त लाइये ?
ऊठत बैठत सोवत जागत, सदा सदा हरि ध्याइये।
हे भाई ! एक परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी से क्यों चित्त लगाता है ? उठते-बैठते, सोते-जागते तुझे सदैव उसी का ध्यान करना चाहिए।
यह शरीर सुन्दर नहीं है। यदि ऐसा होता तो प्राण निकल जाने के बाद भी यह सुन्दर लगता। हाड़-मांस, मल-मूत्र से भरे इस शरीर को अंत में वहाँ छोड़कर आयेंगे जहाँ कौए बीट छोड़ते हैं।
मन के समक्ष बार-बार उपर्युक्त विचार रखने चाहिए। शरीर को असत्, मल-मूत्र का भण्डार तथा दुःखरूप जानकर देहाभिमान का त्याग करके सदैव आत्मनिश्चय करना चाहिए। यह शरीर एक मकान से सदृश है, जो कुछ समय के लिए मिला है। जिसमें ममता रखकर आप उसे अपना मकान समझ बैठे हैं, वह आपका नहीं है। शरीर तो पंचतत्वों का बना हुआ है। आप तो स्वयं को शरीर मान बैठे हो, परंतु जब सत्य का पता लगेगा तब कहोगे कि 'हाय ! मैं कितनी बड़ी भूल कर बैठा था कि शरीर को 'मैं' मानने लगा था।' जब आप ज्ञान में जागोगे तब समझ में आयेगा कि मैं पंचतत्वों का बना यह घर नही हूँ, मैं तो इससे भिन्न सत्-चित्-आनन्दस्वरूप हूँ। यह ज्ञान ही जिज्ञासु के लिए उत्तम खुराक है।
संसार में कोई भी किसी का वैरी नहीं है। मन ही मनुष्य का वैरी और मित्र है। मन को जीतोगे तो वह तुम्हारा मित्र बनेगा। मन वश में हुआ तो इन्द्रियाँ भी वश में होंगी।
श्रीगौड़पादाचार्यजी ने कहा हैः 'समस्त योगी पुरूषों के भवबंधन का नाश, मन की वासनाओं का नाश करने से ही होता है। इस प्रकार दुःख की निवृत्ति तथा ज्ञान और अक्षय शांति की प्राप्ति भी मन को वश करने में ही है।'
मन को वश करने के कई उपाय हैं। जैसे, भगवन्नाम का जप, सत्पुरूषों का सत्संग, प्राणायाम आदि।
इनमें अच्छा उपाय है भगवन्नाम जपना। भगवान को अपने हृदय में विराजमान किया जाय तथा गर्भ का दुःख, जन्म का दुःख, बीमारियों का दुःख, मृत्यु का दुःख एवं चौरासी लाख योनियों का दुःख, मन को याद दिलाया जाय। मन से ऐसा भी कहा जाय कि 'आत्मा के कारण तू अजर, अमर है।' ऐसे दैनिक अभ्यास से मन अपनी बदमाशियाँ छोड़कर तुम्हारा हितैषी बनेगा। जब मन भगवन्नाम का उच्चारण 200 बार माला फेरकर करने के बजाय 100 माला फेरकर बीच में ही जप छोड़ दे तो समझो कि अब मन चंचल हुआ है और यदि 200 बार माला फेरे तो समझो कि अब मन स्थिर हुआ है।
जो सच्चा जिज्ञासु है, वह मोक्ष को अवश्य प्राप्त करता है। लगातार अभ्यास चिंतन तथा ध्यान करने से साधक आत्मनिश्चय में टिक जाता है। अतः लगातार अभ्यास, चिंतन, ध्यान करते रहना चाहिए, फिर निश्चय ही सब दुःखों से मुक्ति और परमानंद की प्राप्ति हो जायेगी। मोक्ष प्राप्त हो जायेगा।
अपनी शक्ल को देखने के लिए तीन वस्तुओं की आवश्यकता होती है – एक निर्मल दर्पण, दूसरी आँख और तीसरा प्रकाश। इसी प्रकार शम, दम, तितिक्षा, ध्यान तथा सदगुरू के अद्वैत ज्ञान के उपदेश द्वारा अपने आत्मस्वरूप का दर्शन हो जाता है।
शरीर को मैं कहकर बड़े-बड़े महाराजे भी भिखारियों की नाँई संसार से चले गये, परंतु जिसने अपने आत्मा के मैं को धारण कर लिया वह सारे ब्रह्माण्डों का सम्राट बन गया। उसने अक्षय राज्य, निष्कंटक राज्य पा लिया।
हम परमानंदस्वरूप परब्रह्म हैं। सबमें हमारा ही रूप है। जो आनंद संसार में भासता है, वह वास्तव में आत्मा के आनंद की ही एक झलकमात्र होती है। तुम्हारे भीतर का आनंद ही अज्ञान से बाहर के विषयों में प्रतीत होता है।
हम आनंदरूप पहले भी थे, अभी भी हैं और बाद में भी रहेंगे। यह जगत न पहले था, न बाद में रहेगा, किंतु बीच में जो दिखता है वह भी अज्ञानमात्र है। आरम्भ में केवल आनंदतत्व था, वैसे ही अभी भी ब्रह्म का ही अस्तित्व है।
जैसे सोना जब खान के अन्दर था तब भी सोना था, अब उसमें से आभूषण बने तो भी वह सोना ही है और जब आभूषण नष्ट हो जायेंगे तब भी वह सोना ही रहेगा, वैसे ही केवल आनंदस्वरूप परब्रह्म ही सत्य है।
चाहे शरीर रहे अथवा न रहे, जगत रहे अथवा न रहे, परंतु आत्मतत्त्व तो सदा एक-का-एक, ज्यों का त्यों है।

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