Monday, April 19, 2010

शरीर संसार के लिए है। एकान्त अपने लिए है और प्रेम भगवान के लिए है। यह बात अगर समझ में आ जाय तो प्रेम से दिव्यता पैदा होगी, एकान्त से सामर्थ्य आयेगा और निष्कामता से बाह्य सफलताएँ तुम्हारे चरणों में रहेंगी।

धन से बेवकूफी नहीं मिटती है, सत्ता से बेवकूफी नहीं मिटती है, तपस्या से बेवकूफी नहीं मिटती है, व्रत रखने से बेवकूफी नहीं मिटती है। बेवकूफी मिटती है ब्रह्मज्ञानी महापुरूषों के कृपा-प्रसाद से और सत्संग से, सत्शास्त्रों की रहमत से।

आनंद का ऐसा सागर मेरे पास था और मुझे पता न था अनंत प्रेम का दरिया मेरे भीतर लहरा रहा था और मैं भटक रहा था संसार के तुच्छ शुकों में! हे मेरे गुरुदेव! मुझे माफ़ कर देना

1 comment:

  1. डायना जी अब में आप से क्या कहूँ आप
    सही भी हैं और गलत भी हैं दर असल
    किसी चीज को जानना और मानना दो
    अलग अलग चीजें हैं अब या तो आप
    से फ़ेस टू फ़ेस बात हो या फ़ोन पर
    बात हो.. तब तक आप ऐसा करें कि
    मेरे ब्लाग पर पङे कि मेरे विचार क्या
    हैं वे आपके जैसे ही हैं पर फ़िर भी दोनों
    मैं बेहद अंतर है वैसे मैं नेट पर अध्यात्म
    विचार वालों को खोज रहा था और मुझे
    खुशी है कि आप मिल गयीं
    मेरी शुभकामनाएं
    my blog satguru-satykikhoj.blogspot.com

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