जिसने मन के मैल का मार्जन कर लिया उसी ने वास्तव में सदा-सदा के लिए स्नान कर लिया और शरीर का स्नान कितनी भी अच्छी तरह से किया जाये किन्तु आठ दस गंटे में पुनह: स्नान की आवस्यकता प्रतीत होने लगती है सारी उम्र शरीर का सनसन किया जाये तो भी शरीर को शुद्ध नहीं किया जा सकता
क्या पानी में मल मल नहावे,
अरे मन का मैल उतर प्यारे
क्या मथुरा क्या कासी धावे,
घाट में गोटा मर प्यारे
योग, साधन, भक्ति, इश्वर स्मरण, सत्संग अदि उपचारों से जब भली- भांति मन का सनसन हो जाता है भीतर का अंधकार रूपी मैल हट जाता है तब जिव की सर्वकालिक शुद्धि होती है
Tuesday, March 30, 2010
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