Wednesday, March 24, 2010

अपनी निर्बलता का ज्ञान वेदना जाग्रत करने में समर्थ है।यदि उस वेदना को परदोष-दर्षन से दबाया ना जाय ,तो वेदना भी स्वत: दोषों को भस्मीभूत कर निर्दोषता की स्थापना में समर्थ हो जाती है और फिर निर्दोषता दोषों को पुन: उत्पन्न नहीं होने देती।इस द्रष्टि से वेदना और दोषों को न दोहराना ही निर्दोष बनाने का मुख्य हेतु है।

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