Friday, March 26, 2010

आप अपने तन,मन,धन सबकी सार्थकता प्रभु की प्रसन्नता में ही समझेंगे,प्रभुकी प्रसन्नता के लिये उनकी त्याग में तनिक भी संकोच नहीं करेंगे तो प्रभु को विवश होकर आपकी खुशामद करनी होगी। ऎसी बात होने पर भी आपको तो प्रभु की ही प्रसन्नता में प्रसन्न रहना चाहिये, उनसे अपनी खुशामद कराने की इच्छा रखना भी एक प्रकार का स्वर्थ ही है।

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