Wednesday, March 24, 2010

मैं नश्वर देह नहीं, मैं तो वह शाश्वत आत्मा हूँ जहाँ से देह की आँख को दर्शन की शक्ति, मन को मनन की शक्ति, कानों को श्रवण की शक्ति, नासिका को गंध की शक्ति, जिह्वा को स्वाद की शक्ति और बुद्धि को निर्णय करने की शक्ति मिलती है। वह आत्मा स्थिर रहती है जबकि निर्णय बदलते हैं, विचार बदलते हैं, देखने के दृश्य व सुनने के शब्द बदल...ते हैं फिर भी जो नहीं बदलता वह मेरा विट्ठल चैतन्य आत्मा ही मुझे सत्य लगता है।

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